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Om in Hindi - कैसे होता है ओम के ध्यान से रोग का नाश - ओम क्या है - ओम शब्द का क्या अर्थ है - ओम का ध्यान

हिन्दू धर्म के माने ओम शब्द का क्या अर्थ है-

ॐ (ओउम्) एक स्वर  है जो किसी व्यक्ति विशेष कोई सम्बन्ध नहीं और न ही किसी धर्म, मजहब और सम्प्रदाय से है बल्कि यह तो सभी मुख्य संस्क्रतियों का एक प्रमुख स्रोत है | यश तो परमब्रम्ह की शक्ति और ईश्वर का प्रतीक है | अगर हम ‘ओउम्’ शब्द का संधि विच्छेद करें तो हमें अ+उ+म वर्ण प्राप्त होते है | इसमें ‘अ’ वर्ण ‘सृष्टि’ को दर्शाता है, ‘उ’ वर्ण ‘स्थिति’ को और ‘म’ वर्ण से ‘ले’ का बोध होता है | ओउम् शब्द से तीनों देवता ब्रम्हा, विष्णु और महेश का बोध होता है इसलिए इसका उच्चारण करने से इन तीनों देवता का आवाहन होता है |

‘ओउम्’ के तिन अक्षर तीनों वेदों (ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद) का भी प्रतीक माना जाता है | सत्य तो यह है कि ‘ओउम्’ ही सारे धर्मो और शास्त्रों का स्त्रोत कहा जाता है |

“कठोपनिषद्” के अनुसार यमराज नचिकेता से कहते है:

                                    सर्वे वेद यत् पद्मामनन्ति तपंसि सर्वाणि च यद वदन्ति |
                               यदिच्छन्तो ब्र्म्हाचर्य चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण ब्रवीभ्योमित्येत्त् ||

अर्थ:- सभी वेदों ने जिस पद की महिमा का गुणगान एम् अलोकन किया गया है, तपस्वियों के ताप के समय जिस शब्द का उच्चारण किया है उसी महाशक्ति को साररूप में मै तुम्हे समझाता हूँ | हे नचिकेता ! समस्त वेदों का सार, तपस्वियों का तप और ज्ञानियों का ज्ञान सिर्फ ॐ (ओउम्) में ही निहित है |

“श्रीमद्भगवद् गीता” में भगवान अर्जुन को उपदेश देते हुए श्री कृष्ण कहते है :

ओमित्येकाक्षरं ब्रम्हा व्याहर न्यामनुस्मरन् | 
यः प्रयाति त्यजनदेहं स याति परमां गतिम् ||

अर्थ :- मन के द्वारा प्राण को मस्तक पर स्थापित करके, योगावस्था में स्थित हो कर जो मनुष्य ब्रम्हा ॐ का उच्चारण करता है और इसके अर्थ स्वरूप मुझ निर्गुण ब्रम्हा का चिंतन-मनन करते हुए प्राण त्याग करता है, वह मनुष्य  परम गति को प्राप्त होता है |

“कठोपनिषद्” में ॐ (ओउम्) की स्पष्ट व्याख्या करते हुए बताया गया है कि ॐ ही परम ब्रम्हा है | इसी अक्षर का ज्ञान प्राप्त कर मनुष्य जो चाहता है वो पा लेता है | यही अति उत्तम एवं आलंबन है और यही अक्षर एकमात्र सबका अंतिम आश्रय है | इस आलंबन को भली भाती साधना कर ब्रम्हालोक में महिमा-मंडित होते है |

यदि हम इसका सधारण अभिप्राय से अलोकन करे तो इसकी ब्याख्या कुछ इस प्रकार से है 

  1. सबसे सामान्य एवं ग्राह्य अर्थ ईश्वर ही है। तस्य वाचक: प्रणव:(ऊँ)।ऊंकार का ईश्वर से साक्षात संबंध है।
  2. सृष्टि के प्रारंभ में ऊँ रुपी नाद का प्रादुर्भाव ही हुआ था। यही ऊँ ही समस्त ब्रह्माण्ड का सार है।
  3. अक्षर के दृष्टिकोण से ऊँ तीन अक्षर अ,ऊ,म की वैखरी उत्पत्ति मेँ अकार,उकार एवं मकार त्रिशब्दों का संगम है|
  4. जिसमें चतुर्थ पाद मात्रा न होकर बिंदु नाद ँँ है। काल की दृष्टि से ऊँ भुत,भविष्य और वर्तमान की स्थिति का द्योतक भी है।
  5. लोक दृष्टि से ऊँ का अकार भूमि को,उकार स्वर्ग को एवं मकार अंतरिक्ष को स्थापित करते है। 
  6. वैदिक दृष्टि में अकार ऋगवेद को,उकार यजुर्वेद को,मकार सामवेद का द्योतक है।
  7. इक ओमकार सतनाम  गूरूवाणी भी ऊँ का पर्याय है।
ओम के ध्यान से रोग का नाश -
मेडिटेशन को मंत्र ध्यान भी कहा जाता है. हिन्दू धर्म में ॐ शब्द का काफी महत्व माना गया है. कहा जाता है की ॐ का उच्चारण मात्र से ही मन में शांती और एकाग्रता आती है. हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ओम या ओमकार; ब्रह्मा (निर्माता) , विष्णु ( रक्षक ) और शिव ( मुक्तिदाता ) का प्रतीक है | 

  1. थाइरॉइड प्रॉब्लम – ॐ का उच्चारण करने से गले में वाइब्रेशन होता है। ... 
  2. एंग्जायटी – ॐ का उच्चारण करने से स्ट्रेस और घबराहट जैसी प्रॉब्लम दूर होती हैं।
  3. स्ट्रेस और टेंशन – ॐ के जाप से मानसिक शांति मिलती है। ...
  4. ब्लड सर्कुलेशन – जाप करने से बॉडी में ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है।



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