Om Gatha | ओम गथा
ओ३म् (ॐ) या ओंकार का नामान्तर प्रणव है। यह ईश्वर का वाचक है। ईश्वर के साथ ओंकार का वाच्य-वाचक-भाव सम्बन्ध नित्य है, सांकेतिक नहीं। संकेत नित्य या स्वाभाविक सम्बन्ध को प्रकट करता है। सृष्टि के आदि में सर्वप्रथम ओंकाररूपी प्रणव का ही स्फुरण होता है। तदनन्तर सात करोड़ मन्त्रों का आविर्भाव होता है। इन मन्त्रों के वाच्य आत्मा के देवता रूप में प्रसिद्ध हैं। ये देवता माया के ऊपर विद्यमान रह कर मायिक सृष्टि का नियन्त्रण करते हैं। इन में से आधे शुद्ध मायाजगत् में कार्य करते हैं और शेष आधे अशुद्ध या मलिन मायिक जगत् में। इस एक शब्द को ब्रह्माण्ड का सार माना जाता है जिसमे 16 श्लोक में इसकी महिमा का वर्णित किया गया है |
ओम गथा के माध्यम से हम वेद, पुराण, मनुस्मृति, श्रीमद्भगवद्गीता, उपनिषद, महाभारत, रामायण, श्रुति , एम् पौराणिक कथाओ का उलेख किया गया है | हिन्दू सभय्ता के धर्मो का के सारे गर्न्थो उपन्यास किया गया है | अर्थात संस्कृत का अनुवाद हिंदी में करते हुये हम अपने धर्म गर्न्थो का उलेख तथा अध्ययन करते है | जहा समाज रहीत और मनुष्य से जुड़े उन सारे तथ्यों बारे में जानकरियों को अर्जित करते हुए अपने जीवन शैली पर विचार प्रकट करेंगे।
तथा साथ ही साथ इतिहास और पौरान्विक कथाओं का विशेष रूप से अध्ययन तथा जानकारी प्राप्त करेंगे
Religion
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